भाजपा प्रदेश प्रभारी के कदम पड़ते ही आई कांग्रेस की सुनामी, कांग्रेस की आंधी में जमींदोज हो रही है भाजपा की पुरानी ईमारत
जगदलपुर (अर्जुन झा ):- भाजपा के प्रदेश प्रभारी ओम माथुर के बस्तर की धरती पर कदम रखते ही आई कांग्रेस की सुनामी ने बस्तर में भाजपा की जड़ें हिलाकर रख दी है। बस्तर की वादियों में ऐसी कांग्रेसी बयार बह रही है, जो भाजपा के लिए नसीहत है।
बस्तर संभाग में पुराने भाजपा कार्यकर्त्ताओं का अपनी पार्टी से मोहभंग होता जा रहा है। वे भाजपा का दामन झटककर कांग्रेस का हाथ थामते जा रहे हैं। वह भी ऐसे समय में, जब भाजपा के प्रदेश प्रभारी ओम माथुर बस्तर संभाग के दौरे पर आए हुए हैं। यह कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी कि ओम माथुर के कदम रखते ही बस्तर में कांग्रेस की सुनामी प्रबल होकर सामने आ गई। इधर श्री माथुर ने बस्तर की धरती पर कदम रखे और उधर भाजपाई ईमारत की चूलें हिलने लगीं। संभाग के हर विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के जमीनी कार्यकर्त्ताओं के कांग्रेस में शामिल होने का सिलसिला चल पड़ा है। अगर भाजपा के नए नवेले कार्यकर्त्ता अपनी पार्टी से मुंह मोड़ते, तो यह आम बात समझी जाती, लेकिन यहां तो कहानी कुछ और ही सुनाई दे रही है। भाजपा के पुराने जमीनी कार्यकर्त्ता भी भाजपा को अलविदा कहने लगे हैं। दो दिन पहले ही बीजापुर के एक दर्जन सक्रिय एवं पुराने कार्यकर्त्ताओं ने भाजपा को बॉय बॉय कह दिया। वहां के विधायक विक्रम मंडावी के समक्ष उम्रदराज भाजपा कार्यकर्ताओं ने कांग्रेस का दामन थाम लिया। भाजपा से कांग्रेस में शामिल हुए कार्यकर्ताओं की तस्वीर इस बात की तस्दीक करती नजर आ रही है। तस्वीर तो यह भी बताती है कि किन परिस्थितियों के चलते उन्हें भाजपा से मुंह फेरना पड़ा है। कांग्रेसी खेमे का दावा है कि ये लोग कांग्रेस की रीति नीतियों और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल व क्षेत्रीय विधायक विक्रम मंडावी की कार्यशैली से प्रभावित होकर कांग्रेस में शामिल हुए हैं। अगर यह दावा सच है, तो अब तक समूचे छत्तीसगढ़ को पूरी तरह से कांग्रेसमय हो जाना चाहिए था। मगर यहां बात कुछ और ही है। आखिर ऐसी क्या मजबूरी आन पड़ी कि इन वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को भाजपा से विलग होना पड़ा है। भाजपा संगठन में कुछ तो कमियां रही होंगी कि, जो इन कार्यकर्ताओं के लिए दुखदायी बन गई हों। स्थानीय एवं प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं से सम्मान, स्नेह और अपनत्व न मिल पाना संभवतः इसका मुख्य कारक हो सकता है। इस भाजपा नेतृत्व को चिंतन और चिंता करने की जरूरत है। एक अकेले बीजापुर विधानसभा क्षेत्र में ही भाजपाइयों के कांग्रेसीकरण की खबर सामने नहीं आई है, बल्कि डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार में मंत्री रहे महेश गागड़ा के गृहग्राम के भी दर्जनों भाजपा कार्यकर्त्ता भाजपा के छ्ग प्रभारी श्री माथुर के बस्तर प्रवास के बीच कांग्रेस में शामिल हुए हैं। इसके पहले बस्तर विधानसभा क्षेत्र के करपावंड अंचल के भी अनेक भाजपा कार्यकर्त्ताओं ने कांग्रेस का दामन थाम लिया था। इस अंचल के अनेक भाजपाइयों तथा भाजपा समर्थक ग्रामीणों ने बस्तर क्षेत्र के विधायक लखेश्वर बघेल के समक्ष कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ले ली थी। उससे काफी पहले जगदलपुर विधानसभा क्षेत्र के सुदूर वन अंचल के भी पचासों ग्रामीण और भाजपा कार्यकर्त्ता विधायक एवं संसदीय सचिव रेखचंद जैन के समक्ष कांग्रेस से जुड़ चुके हैं। बस्तर जिले के चित्रकोट विधानसभा क्षेत्र में भी विधायक राजमन बेंजाम कांग्रेसी बयार बहाने में लगे हैं। श्री बेंजाम भी सैकड़ा भर भाजपाइयों को कांग्रेस में शामिल करा चुके हैं। सुकमा जिले में तो मंत्री कवासी लखमा और कांग्रेस का जादू लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है।
भाजपा में मची भगदड़ का सच तो यह है
इन सारे घटनाक्रमों का लब्बो लुआब यही कि बस्तर संभाग में भाजपा के भीतर सबकुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है। भाजपा में मची भगदड़ की सच्चाई किसी से छुपी नहीं है। इसका एक सबसे बड़ा कारण तो यह है कि दूसरे दलों पर परिवारवाद का तोहमत लगाने वाली भाजपा भी बस्तर संभाग में इस रोग से अछूती नहीं रह गई है। संगठन में स्थानीय स्तर पर एक ही परिवार के दो – तीन लोगों का जलवा बढ़ते जाना है। इस मामले में संभाग के एक पूर्व मंत्री और उनके भाई के दबदबे और मनमर्जी के किस्से आए दिन सुनाई देते रहते हैं। मैदानी भाजपा कार्यकर्ताओं का कहना है कि ये दोनों भाई अपने आगे बाकी सभी को बौना साबित करने के लिए हमेशा तुले रहते हैं। मंत्री रहते तो उन्होंने अपना जलवा ऐ जलाल खूब दिखाया, अब संगठन में बड़ा पद मिल जाने के बाद उनकी अकड़ कुछ और बढ़ गई है। कार्यकर्त्ताओं को सम्मान देना तो दूर की बात है, उन्हें बात बात पर जलील किया जाता है। बस्तर संभाग आदिवासी बहुल है, आदिवासी बड़े स्वाभिमानी और दो मीठे बोल के भूखे होते हैं। कोई उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाए, यह वे कतई बर्दाश्त नहीं करते। उनके स्वाभिमान को ठेस पहुंचाने वाला भले ही उनकी अपनी बिरादरी का क्यों न हो। कुल मिलाकर भाजपा में मची भगदड़ के मूल में यही मुद्दा निहित है। भाजपा नेतृत्व को इस पर मंथन करना होगा, अन्यथा उन्हें पार्टी का झंडा उठाने वाले ढूंढे से भी नहीं मिलेंगे।