छत्तीसगढ़ का पहला त्यौहार हरेली मनाया गया धूमधाम से



बकावंड :- सावन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को छत्तीसगढ़ का पहला त्योहार हरेली धूमधाम से मनाया गया। लोगों में भारी उत्साह देखने को मिला। किसानों ने अपने नांगर, कुदाल, फावड़ा, गैंती, सब्बल, हंसिया आदि कृषि यंत्रों तथा खेती किसानी में अहम योगदान देने वाले गोवंश की आराधना की। गांवों में खेलकूद के आयोजन हुए।
सावन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या पर हरेली त्यौहार मनाया जाता है।

मानसूनी बारिश की फुहारें पड़ने के बाद जब धरती हरे भरे पेड़ पौधों और घांस से अपना श्रृंगार कर हरियाली की चादर ओढ़ लेती है, तब हरेली का यह त्यौहार मनाया जाता है। कोंडागांव जिले के बड़े राजपुर विकासखंड अंतर्गत ग्राम हरवेल निवासी युवा किसान कमलेश कुमार मरकाम ने इस संवाददाता को हरेली त्यौहार के महत्व के बारे में विस्तार से जानकारी दी। कमलेश ने बताया कि इस दिन किसान कुल देवता, कृषि औजारों और पशु धन की पूजा -अर्चना कर गोधन के उत्तम स्वास्थ्य और रोग रहित अच्छी फसल की कामना करते हैं। हरेली पर्व में बैलों, हल व खेती में काम आने वाले औजारों की विशेष पूजा करने के बाद खेती का बचा काम शुरू किया जाता है। हरेली पर्व पर किसान नांगर, गैंती, कुदाली, फावड़ा समेत कृषि में काम आने वाले सभी औजारों की साफ- सफाई करते हैं। जिन किसानों के पास ट्रैक्टर हैं, वे उसे धोकर उसकी पूजा करते हैं। इस अवसर पर घरों में गुड़ और आटे का मीठा चीला बनाया जाता है। बैल, गाय व भैंस को बीमारी से बचाने के लिए बगरंडा और नमक खिलाने की परपंरा है। कमलेश कुमार मरकाम ने बताया कि इस पर्व पर बच्चों व युवाओं के लिए गांवों में कई तरह की प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। ग्राम हरवेल, बकावंड ब्लॉक के ग्राम बड़े राजपुर, तुंगापाल, दाबगुड़ा, कौड़ावंड, करंजी, बकावंड, मूली, चिखल करमरी, राजनगर, किंजोली, रामपाल, बस्तर ब्लॉक के भानपुरी, करंदोला समेत प्रायः सभी गांवों में हरेली त्यौहार की खुशी में कबड्डी, खो खो, कुर्सी दौड़, फुगड़ी, कुर्सी दौड़, नारियल फेंक, गेंड़ी दौड़ आदि प्रतियोगिताएं हुईं। इस दिन बच्चे, किशोर और युवा गेंड़ी बनाकर उसमें चढ़ते और उसके सहारे चलते हैं। गेड़ी चढ़ने का सिलसिला पोला त्यौहार तक जारी रहता है।

बस्तर दशहरा भी जुड़ा है इस पर्व से
75 दिनों तक मनाया जाने वाला विश्व प्रसिद्ध एवं ऐतिहासिक बस्तर दशहरा का नाता भी हरेली से जुड़ा हुआ है।हरियाली अमावस्या को ही पाटजात्रा रस्म के साथ बस्तर दशहरे की शुरुआत होती है। पाटजात्रा में बस्तर संभाग के गणमान्य नागरिक, मांझी, चालकी, पुजारी राऊत शामिल होकर यह रस्म को निभाते हैं।

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