श्वांस का लेना जन्म और श्वांस का छोड़ना ही मृत्यु है- स्वामी राजीव लोचन दास जी महाराज

बुद्ध पुरुष में जन्म के प्रति लालसा और मृत्यु के प्रति भय नहीं होता – स्वामी राजीवलोचन दास जी महाराज

कवर्धा,,,श्री रुद्र महायज्ञ, श्रीमद्भागवत ज्ञान सप्ताह, श्री रामकथा और योग शिविर के तीसरे दिन व्यासपीठ स्वामी राजीव लोचन दास जी महाराज ने कहा कि राजा परीक्षित ने समर्थ सदगुरु, सुकदेव से दो प्रश्न किए। जिसकी मृत्यु शीघ्र हो और जिसकी मृत्यु भविष्य में होने वाली हो अर्थात लंबे समय बाद होने वाली हो। ऐसे व्यक्ति को क्या करना चाहिए?

श्री गणेशपुरम कवर्धा में गणेश तिवारी द्वारा आयोजित श्रीमद्भागवत ज्ञान सप्ताह के तीसरे दिन स्वामी राजीव लोचन दास जी महाराज ने कहा कि प्रतिउत्तर में जीवन और मृत्यु का विज्ञान श्री सुकदेव जी ने परीक्षित को वर्णित करते हुए सुनाया। संसार में ये दोनों घटनाएं एक साथ घटती है। व्यक्ति का शरीर हर क्षण मरता हैं। और लंबे समय बाद पूर्ण रूप से मर जाता है। श्वांस का लेना ही जीवन (जन्म) है और श्वांस का छोड़ना ही मृत्यु है इससे भयभीत होने की बुद्धपुरुष को क्या आवश्यकता है। ये सब सतत चलने वाली प्रक्रियाएँ है। अतः जन्म और मृत्यु के परिवर्तन को साक्षी भाव से देखने की योग्यता का विकास कराना ही श्रीमद्भागवत महापुराण का उद्देश्य है, जो कि पूरा भी हुआ है। श्रीमद्भागवत के अंतिम श्लोक में सुकदेव जी ने परीक्षित से पूछा क्या तुम्हें अभी भी जन्म के प्रति लालसा और मृत्यु के प्रति भय है? प्रतिउत्तर में परीक्षित ने
कहा कि अब श्रीमद्भागवत श्रवण करने के पश्चात बुद्धि आत्म भाव में स्थिर हो चुकी है। इसलिए जीवन के प्रति लालसा और मृत्यु के प्रति भय मुझे नही सता रहा है।

कार्यक्रम में आयोजक गणेश तिवारी, श्रीमती नेहा तिवारी, श्रीमती रेखा पांडेय, श्रीमती विजयलक्ष्मी तिवारी, पतंजलि योग समिति हरिद्वार योगगुरु स्वामी नरेन्द्र देव, सुरेश चंद्रवंशी, मेघानन्द तिवारी, राजकुमार वर्मा, रामसिंह, शत्रुहन वर्मा, हरि तिवारी, बसंत नामदेव, अजय चन्द्रवंशी, हजारी चन्द्रवंशी, ईश्वर चंद्रवंशी, रोहित जायसवाल, भागवत चन्द्राकर, उमेश शर्मा, आशीष तिवारी सहित बड़ी संख्या में श्रोता गण उपस्थित थे।

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