अर्पिता की दिलेरी: रोते-बिलखते अजय से कहती रही, मुश्किलें लाख आये, मिलकर लड़ेंगे

जंगल की खाक छानने के बाद जब अजय सामने आए तो टूटने नहीं दिया हौसला,

ग्रामीणों पर बरसाया प्यार, कहाः ये लोग बहुत अच्छे

(पी.रंजन दास)
बीजापुर :- आप बहुत स्ट्रांग है, यहां के लोग बहुत अच्छे हैं, इससे पहले भी हम स्ट्रग्ल कर चुके हैं, आगे भी कोई प्राब्लम आएगी, मिलकर लड़ेंगे…ये शब्द थे पति से लिपटकर बिलख रही अर्पिता के, जो बुधवार को माओवादियों की जनअदालत में अपने सुहाग को वापस लाने दिलेरी से पहुंची हुई थी।
ठीक एक सप्ताह पहले बीजापुर के गोरना गांव से अगवा इंजीनियर अजय रोशन लकड़ा की रिहाई को लेकर जो मुहिम शुरू हुई थी, इसमें उनकी पत्नी अर्पिता लकड़ा ने परिस्थितियों का डटकर सामना किया।
अर्पिता की अपने पत्नी को वापस लाने की जिद ने उन्हें बीजापुर के उन इलाकों तक पहंुचने पर मजबूर कर दिया, जहां किसी भी आम इंसान का पहुंचकर सुरक्षित लौट आना मुश्किल है, बावजूद परिस्थतियों के आगे घुटने ना टकते हुए अर्पिता ने एक पत्नी और एक मां का फर्ज बख्ूाबी निभाया।
पति के लापता होने के दो दिन बाद ही स्थानीय पत्रकारों की टीम के साथ अर्पिता अपने पांच साल के बच्चे को साथ लेकर गंगालूर के बुरजी में दाखिल हुई। यहां ग्रामीणों से मदद की गुहार लगाई। गोंडी ना आते हुए भी अपनी भावनाओं, हालात और मजबूरी से उन्हें वाकिफ कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
बुरजी से लौटकर आने के बाद अगले दिन गंगालूर के एक अन्य इलाके में पत्रकारों का दल दाखिल हुआ था, लेकिन खाली हाथ लौट आने के बाद अगले ही दिन अर्पिता ने दोबारा जंगल जाने का फैसला किया। अपनी जिद को जीत में बदलने अर्पिता अगले ही दिन पुनः मीडिया कर्मियों के साथ गंगालूर के एक अन्य गांव में पहुंची, जहां नक्सलियों की तूती बोलती है, लेकिन घंटों मशक्कत के बाद भी यहां भी अर्पिता को मायूसी के सिवाए कुछ हासिल नहीं हुआ फिर भी एक आयरन लेडी की तरह उसने हारी नहीं मानी और देर शाम बीजापुर के रास्ते उसी गोरना गांव में वह दाखिल हुई जहां पति अजय लकड़ा अगवा हुए थे।
रात ढलने और जंगल के सन्नाटे के बीच यहां से हताश होकर लौटने के सिवाए कोई चारा नहीं था, लेकिन जीत की शुरूआत अगले दिन ही हो गई,जब पत्रकारों के दल के साथ अर्पिता एक दिन पहले जिस गांव पहुंची थी, वहां पहुंच गई और यही से अजय तक पहुंचने का रास्ता नजर आने लगा था, लेकिन मंजिल अब भी दूर थी, फिर क्या था, आर-पार की तर्ज पर देर शाम पत्रकारों की टीम ने जहां गोरना गांव में रात बीताने का निश्चय किया तो अर्पिता अपनी इस लड़ाई को परवान तक पहुंचाने का निश्चय किया और शाम ढलते-ढलते वह भी गोरना गांव पहुंच गई और निडरता के साथ रात बीताई।
और अंधेरी रात के बाद वह सुबह भी आ गई, जिसका अर्पिता को बेसब्री से इंतजार था, सुबह माओवादियों की तरफ से पत्रकारों की टीम को संदेश मिला कि वे एकअज्ञात स्थल पर उन्हें रिहा करने वाले है।
देरी ना करते हुए समय पर पत्रकार अर्पिता को वहां लेकर पहुंचे, जहां जनअदालत लगी हुई थी। बांस के सहारे चलते पति को दूर से देख अर्पिता दौड़ी-दौड़ी उनके पास पहुंची और रोते-बिलखते पति से लिपट गई, इस दौरान वह एक ही बात दोहराती रही कि यहां के लोग बहुत अच्छे और भोले भाले हैं, जिंदगी में चुनौतियां पहले भी आई है और आगे भी आएगी, लेकिन हम डरेंगे नहीं बल्कि मुस्कुराकर सामना करेंगे। अर्पिता के इस जज्बात भरी बातोंने सात दिनों से माओवादियों के कब्जे में रहे इंजीनियर अजय लकड़ाको भी हौसला दिया और इस तरह एक आरयन लेडी की तरह अर्पिता ने पति को वापस लाने का अपना संकल्प पूरा किया। उसके इस जज्बे को लोग अब दिल से सलाम भी कर रहे हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *